भूनभूनाती दबी आवाज़
जो मध्यम से
ऊँची होने लगी
रात के साथ
रिश्ते भी
स्याह से भरने लगीं
कहते हैं ...
ये वक्त निशाचर का है।
वाकई!!!
इसलिए------
तू-तू मैं-मैं की शुरुवात
अलगाव में तब्दीलने लगी ।
भले प्रतिशोध न हो
किन्तु ...
आक्रोश में निकले शब्द
समक्षों को
झकझोर देते हैं।
ताबड़तोड़ प्रतिद्वंदिता
रिश्तो को मरोड़ देते हैं।
पर...
भोर होने से पहले...
प्रतिद्वन्दी थककर तितर-बितर...
माहौल शांत...
प्रश्न वही आखिर मुद्दा क्या था???😊
।।सधु।।
(चित्र- साभार गूगल)
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
Deleteआभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 02 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी लिखी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" साझा करने के लिए आभार दी।
ReplyDeleteसादर।
सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
सादर
सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसादर
आक्रोश में निकले शब्द
ReplyDeleteसमक्षों को
झकझोर देते हैं।
ताबड़तोड़ प्रतिद्वंदिता
रिश्तो को मरोड़ देते हैं।
सत्य
हार्दिक आभार दी
Deleteसादर
आज की व्यावहारिक विद्रुपताओं का पटाक्षेप करती यथार्थ रचना. प्रश्न वही आखिर मुद्दा क्या था???????
ReplyDeleteउत्कृष्ट विश्लेषण हेतु हार्दिक आभार
ReplyDeleteसादर
भोर होने से पहले...
ReplyDeleteप्रतिद्वन्दी थककर तितर-बितर...
माहौल शांत...
प्रश्न वही आखिर मुद्दा क्या था???😊
😀😀😀
आभार!
ReplyDeleteसादर