पिघलने को तो मोम भी
लोहा भी पिघलता है
पर विलय होने के लिए....
कपूर की तरह पिघलने दो।
।।सधु।।
(चित्र -साभार गूगल)
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु । सर्व: कामानवाप्नोतु सर्व: सर्वत्र नंदतु । " सब लोग कठिनाइयों को पार करें, कल्याण ही कल्या...
अरे वाह। बहुत खूब!
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteबहुत सुंदर जी
ReplyDeleteआभार
Deleteकपूर की तरह पिघलने दो।
ReplyDeleteक्या बात
आभार!
ReplyDeleteसादर