पर...
चुप रहने की नसीहत ना दिया करो 
यह चुप्पी 
बवंडर मचाया करती है ।
गर कोई चुप है तो 
चुपचाप उसे चुप रहने दो
चुप्पी तोड़ना भी 
बवंडर मचाया करती है
इस चुप्पी थामे चेहरे पर 
अनजाने में भी न फब्तियां कसना 
कसकर बांध रखा हो शायद 
अवसाद उसने सीने में
और जब सीने का अवसाद 
सैलाब बन जाए 
तो बड़ा कठिन होता है 
भावनाओं को सजोने में।
क्योंकि,
यह चुप्पी वो हर्फ़ है 
जो बिन बोले 
सब बयां कर जाती है ।
जुबां चुप हो पर 
नज़रों से सजा़ मिल जाती है।
इसलिए इस चुप्पी को चैन से 
चुप ही रहने दो
चुप्पी तोड़ना भी 
बवंडर मचाया करती है।।
।।सधु।। 
चित्र -साभार गूगल
  
वाह !बहुत सुंदर !
ReplyDeleteआभार
Deleteसादर
चुप्पी तोड़ना तो सही है
ReplyDeleteपर...
चुप रहने की नसीहत
ना दिया करो
यह चुप्पी
बवंडर मचाया करती है ।
वाह!
सुन्दर
हार्दिक आभार
Deleteसादर
बिलकुल ठीक है आपकी यह बात सधु जी । शाज़ जी की एक ग़ज़ल है - मेरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए, तू दोस्त है तो नसीहत न कर ख़ुदा के लिए ।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी कविता/ रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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