Thursday 12 November 2020

असंख्य जुगनुओं से सजाने की आशा

अंतर्मन में फैले तिमिर को
असंख्य जुगनुओं से सजाने की आशा
चहुँओर जलाए सप्रेम दीप से
देव धन्वन्तरि के आने की आशा।

खिलखिलाए कोई आज
न बिलबिलाए कोई आज
न केवल घी के दीये हीं जलाऊँ
बल्कि किसी क्षुधार्त के 
क्षुधा को तृप्त करने  की आशा।

गणेश लक्ष्मीजी की मूर्तियों के साथ
दो-चार फूलझड़ियाँ 
सेवकों के बच्चों के लिए भी 
लाने की आशा।
बड़ो के आर्शीवाद,
छोटों के स्नेह  
मित्रों की शुभकामनाओं के साथ
उत्सव मनाने की आशा।।

अंतर्मन में फैले तिमिर को
असंख्य जुगनुओं से दूर कर
खिलखिलाती हँसी खुशी के साथ 
मनाने की आशा।
    ॥'सधु'॥

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