असंख्य जुगनुओं से सजाने की आशा
चहुँओर जलाए सप्रेम दीप से
देव धन्वन्तरि के आने की आशा।
खिलखिलाए कोई आज
न बिलबिलाए कोई आज
न केवल घी के दीये हीं जलाऊँ
बल्कि किसी क्षुधार्त के
क्षुधा को तृप्त करने की आशा।
गणेश लक्ष्मीजी की मूर्तियों के साथ
दो-चार फूलझड़ियाँ
सेवकों के बच्चों के लिए भी
लाने की आशा।
बड़ो के आर्शीवाद,
छोटों के स्नेह
मित्रों की शुभकामनाओं के साथ
उत्सव मनाने की आशा।।
अंतर्मन में फैले तिमिर को
असंख्य जुगनुओं से दूर कर
खिलखिलाती हँसी खुशी के साथ
मनाने की आशा।
॥'सधु'॥
बहुत सुंदर।👌
ReplyDeleteआभार
Deleteसादर
उत्तम विचार की प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार
Deleteसादर