कहे जाते हैं ।
लफ्ज़ !
सुने जाते हैं ।
कुछ लफ्ज़
कहे नहीं 
समझे जाते हैं 
महसूस किए जाते हैं। 
कुछ लफ्ज़
एहसास  के अनुरूप 
ढाले जाते हैं ।
पहल के लिए 
ज़रूरत होती
लफ्ज़-ए-करम  की। 
पर...
 उनके लफ्ज़-ए-करम तो देखिए...
मैंने कुछ कहा भी नहीं
और... 
उन्होंने तो 
पहल भी कर दिया!
।।सधु चन्द्र।। 
  
वाह!
ReplyDeleteआभार।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 11 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" साझा करने हेतु हार्दिक आभार दी।
Deleteसादर।
सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर।
पर...
ReplyDeleteउनके लफ्ज़-ए-करम तो देखिए...
मैंने कुछ कहा भी नहीं
और...
उन्होंने तो
पहल भी कर दिया!
..बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..।
हार्दिक आभार।
Deleteसादर।
गज़ब
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर।
सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार।
Deleteसादर।
आह अद्भुत रच दिया आपने ❤️
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय।
ReplyDeleteसादर।
वाह!
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।