Wednesday, 9 December 2020

आंखों के भीतर रंग-बिरंगे सजीले सपने

रंग-बिरंगे सजीले सपने 
कभी आंखो के भीतर से 
झांकते, इधर-उधर 
कभी अभ्यासरत ढुलक जाते 
आंखों की कोरों से 
जिन्हें सहेज 
अंक में ले 
वापस भरने वाला 
समर्थवान 
कोई नहीं।

कभी ये सपने 
शून्य में जागते 
धैर्य के साथ 
इंतजार में 
वापस होने के लिए ।

अपने प्रस्ताव की 
किलकारियों
अठखेलियों को
गति में देखने के लिए 
उस सुखद अहसास को
जो...
भाप बनकर उड़ गए 
आकाश में 
और बन गए बादल 
आज वह  बादल  
उमड़ घुमड़ रहे 
सिर के ऊपर 
आकाश में ।

मन होता कि भीग जाए 
उस बारिश में ...
जो मेरी सौजन्य से 
ऊपर तक बादलों का ढेर बना पाए हैं ।

निरंतर अभ्यासरत हूँ...
उन बादलों के निर्माण में ।
पता है कि कुछ 
आस-पास छटकेंगे
पर...
कुछ तो कभी बरसेंगे...!
और तृप्ति करेंगे सपने को
यह चातक मन 
उसे अपलक देख रहा है।।

।।सधु चन्द्र।।  

चित्र-साभार गूगल

9 comments:

  1. बेहतरीन रचना।

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  2. निरंतर अभ्यासरत हूँ...
    उन बादलों के निर्माण में ।
    पता है कि कुछ
    आस-पास छटकेंगे
    पर...
    कुछ तो कभी बरसेंगे...!
    और तृप्ति करेंगे सपने को
    यह चातक मन
    उसे अपलक देख रहा है।।
    👌👌👌👌

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  3. मनोहारी और सुंदर रचना...।

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  4. हार्दिक आभार।
    सादर।

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