Tuesday, 15 December 2020

नशेड़ी ज़िंदगी

 नशेड़ी ज़िंदगी

ज़िंदगी एक लत है 
उस नशे कि...
जो रोज़-रोज़ 
माँगती है 
अपनी ज़रूरतों को ।

हर ज़रूरत नशा नहीं 
पर जो ज़रूरत नशा बन जाए 
वही लत है।

किसकी क्या ज़रूरत!  
यह उससे बेहतर 
कौन जाने!
जिसे पूरे करने को 
लांघ जाता 
वह सारी सीमाएँ...
और मुहैया कराता
अपने उस उपादान को...
जिसने उसे जकड़ रखा है 
अपने गिरफ्त में~~
अपने चंगुल में~~

लत कभी बुरी नहीं होती 
पर... 
केवल लिप्त शख़्स के लिए ।

कुछ लतें अच्छी होती हैं 
कुछ सर्वहितकारी बहुत अच्छी
पर...
कुछ सड़ा देती हैं 
साथ में बंधे संबंधों को।

कहते हैं कि 
नशे में डूबा इंसान 
सच बोलता है...
पर मनोभावानुसार...
सबसे अधिक 
मिलावटी शब्दभाव 
नशे की हालत में ही 
बोले जाते हैं 
ताकि... 
लोग उस पर यक़ीन कर सकें 
और वह 
गुमराह कर सके लोगों को।

इंसान शब्द जंजाल से 
मुक्त होना चाहता है ।

मुक्त होना चाहता है...
उस घुटन से 
जो,नशे की हालत में 
समक्षी को झकझोर देते हैं।

यह घुटन 
किसी अच्छे नशे की ओर संकेत न कर 
गर्त में घसीटने का काम करता है ।


(कोशिश करें उत्थान की..
न कि पतन की। )

।।सधु चन्द्र।। 

चित्र-साभार गूगल

38 comments:

  1. "कुछ लतें अच्छी होती हैं
    कुछ बहुत अच्छी
    पर...
    कुछ सड़ा देती हैं
    साथ में बंधे संबंधों को।"

    सही बात कही आपने। पूर्णतः सहमत।

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    1. हार्दिक आभार माननीय।
      सादर।

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  2. लत वही जो सर्वहितकारी हो
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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    1. हार्दिक आभार कविता जी।
      सादर।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (16-12-2020) को "हाड़ कँपाता शीत"  (चर्चा अंक-3917)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. मेरी रचना को उत्कृष्ट मंच प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार माननीय।
      सादर।

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  4. Replies
    1. हार्दिक आभार ज्योति जी।
      सादर।

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  5. हर ज़रूरत नशा नहीं
    पर जो ज़रूरत नशा बन जाए
    वही लत है।
    सत्य कथन..अति सुन्दर सृजन ।

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    1. हार्दिक आभार मीना जी।
      सादर।

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  6. एक विलक्षण और विचारणीय सत्य को उजागर करती प्रस्तुति। ।।।।।

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    1. हार्दिक आभार माननीय।
      सादर।

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  7. आजकल तो मोबाइल ही लत और नशा हो गया है।

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  8. हार्दिक आभार माननीय।
    सादर।

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  9. बहुत गहरी सोच कविता के रूप में उतर आई है

    साधुवाद 🍁🙏🍁

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार वर्षा जी।
      सादर।

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  10. हरिः ॐ तत्सत्


    गहरी सोच कविता के रूप में साधुवाद! बहुत ही सुन्दर अभिव्यति
    सदर नमन
    आचार्य प्रताप
    प्रबंध निदेशक
    अक्षर वाणी संस्कृत सामाचार पत्रम

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हृदय तल से आभार माननीय।
      सादर नमन।

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  11. Replies
    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार उर्मिला जी।
      सादर ।

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  12. तमाम लतों पर एक सार्थक रचना सधु जी, वाह

    मुक्त होना चाहता है...
    उस घुटन से
    जो,नशे की हालत में
    सामक्षी को झकझोर देते हैं। ...बहुत खूब

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार अलकनंदा जी!
      सादर।

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  13. कुछ लतें अच्छी होती हैं
    कुछ बहुत अच्छी
    पर...
    कुछ सड़ा देती हैं
    साथ में बंधे संबंधों को।

    सटीक एवं सुन्दर

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    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार माननीय।
      सादर नमन।

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  14. सामयिक रचना बहुत सुंदर

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  15. हार्दिक आभार।
    सादर।

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  16. सार्थक सृजन। सुंदर भाव।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार माननीय।
      सादर।

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  17. Replies
    1. हार्दिक आभार माननीय।
      सादर।

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  18. Replies
    1. हार्दिक आभार माननीय।
      सादर।

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  19. विचारपूर्ण सृजन, बधाई.

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  20. सुन्दर प्रस्तुति

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    Replies
    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार माननीय।
      सादर।

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