मन हिंदी
और यह जीवन
हिंदी हो जाए ।
गोते लगाए बस
हिंदी में
आ... विदेश से लौट
फिर स्वदेशी हो जाए ।।
एक चाहत है
जड़ों की
बस... हिंदी से ही
उसे सींचा जाए।
जन-जन की भाषा हिंदी हो
और ...
हिंदी ही
पहली भाषा कहलाए ।
तमस मिटे
अज्ञान का
ज्योतिर्मय
ज्ञान बिखर जाए।
अलख जगे और गूंज उठे
जन-गण-मन हिंदी हो जाए।
पर याद रहे...
बस एक दिन के लिए न...
माँ के चरणों में स्थान पाएँगे
बल्कि...
हर दिन
हिंदी दिवस मनाएँगे....
।।सधु चन्द्र।।
चित्र-साभार गूगल
विश्व हिन्दी दिवस पर बहुत अच्छी सामयिक रचना
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं।
धन्यवाद एवं हार्दिक आभार कविता जी।
Deleteसादर।
समसामयिक एवं सारगर्भित रचना..हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ..
ReplyDeleteधन्यवाद एवं हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर विचार, सारगर्भित रचना प्रिय सधु जी।
ReplyDeleteसस्नेह।
धन्यवाद एवं हार्दिक आभार श्वेता जी।
Deleteसादर।
सादर नमस्कार कामिनी जी।
ReplyDeleteमेरी रचना को मंच प्रदान करने हेतु हार्दिक आभार।
अलख जगे और गूंज उठे
ReplyDeleteजन-गण-मन हिंदी हो जाए।
बहुत सुन्दर रचना...
विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।
धन्यवाद एवं हार्दिक आभार सुधा जी।
Deleteसादर।
Reply
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद एवं हार्दिक आभार अनुराधा जी।
Deleteसादर।
गहरे भाव लिए सुन्दर रचना हिन्दी दिवस पर
ReplyDeleteधन्यवाद एवं हार्दिक आभार माननीय ।
ReplyDeleteसादर।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार माननीय।
Deleteसादर।