अनजाने में हो गलती जब तक ।
किंतु धृष्टता ना हो स्वीकार,
जब जानकर करे कोई
गलती बार-बार।।
भले... गहना बल का है क्षमा
किन्तु
नहीं हर बार।
अन्त होना अनिवार्य तब
जब शिशुपाल करे
गलती हर बार।
।।सधु चन्द्र।।
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
राम एक नाम नहीं जीवन का सोपान हैं। दीपावली के टिमटिमाते तारे वाल्मिकी-तुलसी के वरदान हैं। राम है शीतल धारा गंगा की पवित्र पर...
बिलकुल सच कहा सधु जी आपने । हम सभी ग़लतियों के पुतले हैं मगर अपनी ग़लतियों को क़ुबूल करना हमें आना चाहिए । ऐसा न करके ग़लतियों को दोहराते जाने पर हम माफ़ी के नहीं, सज़ा के मुश्तहक़ होंगे । और जान-बूझकर की गई ग़लती गुनाह ही होती है जिसकी कभी-न-कभी सज़ा ज़रूर मिलती है । सार्थक अभिव्यक्ति के लिए अभिनंदन आपका ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
आपसे सहमत! सुंदर और सार्थक रचना के लिए आपको शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत सटीक और सार्थक रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 10 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बिल्कुल सच कहा आपने।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
भले... गहना बल का है क्षमा
ReplyDeleteकिन्तु
नहीं हर बार।..
अच्छी सीख..
हार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
मर्यादाओं का अतिक्रमण असहनीय है | स्वाभिमान पर कुठाराघात कब तक ?
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
गहना बल का है क्षमा
ReplyDeleteकिन्तु
नहीं हर बार।
अन्त होना अनिवार्य तब
जब शिशुपाल करे
अति... जब-तब।..बहुत सही प्रसंग सन्दर्भित किया है आपने सधु जी..
हार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
सटीक रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत सार्थक संदेश |
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत सार्थक सटीक रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसादर।
बहुत अच्छे जोड़ा है अंत को ...
ReplyDeleteहा न की अति तो आती है ...
हार्दिक आभार माननीय। सादर।
Deleteवाह!क्या बात ।
ReplyDeleteसहमत।