Friday, 3 September 2021

तूूफ़ान की पोटली

किसी ने तूूफ़ान की पोटली थमाई... 
पर,  
 मैं हँस कर दूर हो गई...।

सागर की लहरें तेज थी 
स्तब्ध शरीर शांत था ।
पैरों तले रेत खिसकती 
सीने में उठता तूफान था ।
एड़िया जमाई खड़ी रही 
सब कुछ ना इतना आसान था!!!
बस!
कुछ ऊपर वाले 
और कुछ उनके बंदे के ऊपर छोड़ दिया।।

।।सधु चन्द्र।। 

4 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०३-०९-२०२१) को
    'खेत मेरे! लहलहाना धान से भरपूर तुम'(चर्चा अंक- ४१७७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 04 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. पैरों तले रेत खिसकती
    सीने में उठता तूफान था ।
    एड़िया जमाई खड़ी रही
    सब कुछ ना इतना आसान था!!!---गहन रचना।

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  4. आपकी बात सरल भी है तथा एक दूसरे कोण देखा जाए तो गूढ़ अर्थ भी समाहित है इसमें। अंत में जो संदेश है, वह सभी संघर्षरत व्यक्तियों के लिए है। गागर में सागर सरीखी रचना हेतु अभिनंदन आपका सधु जी।

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