उन्मुक्त मन का आयतन
उस निर्धारित परिमाप से
कहीं विस्तृत ....
जिसे नियति ने नियत किया
पर हर दिन उस स्वप्निल
उड़ान को जी लेती...
जिसे तुम्हें ले देखा है
।।सधु।।
(चित्र -साभार गूगल)
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु । सर्व: कामानवाप्नोतु सर्व: सर्वत्र नंदतु । " सब लोग कठिनाइयों को पार करें, कल्याण ही कल्या...
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteनया कोई स्वप्न रचती आपकी खूबसूरत रचना। बधाई व शुभकामनाएँ सधु जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसादर
उन्मुक्त मन का आयतन
ReplyDeleteउस निर्धारित परिमाप से
कहीं विस्तृत ....
जिसे नियति ने नियत किया
पर हर दिन उस स्वप्निल
उड़ान को जी लेती...
जिसे तुम्हें ले देखा है
वाह!
आभार!
Deleteसादर