कहीं तू न भटक जाए
न राह हो अंधेरा तेरा
न मंज़िल से पहले अटक जाए
मेरा ज्वलन उस कपूर सा
जो जले ऐसे कि......
लिए ख़ुशबू न क्लेश कोई बच पाए।।
।।सधु।।
चित्र-साभार गूगल
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु । सर्व: कामानवाप्नोतु सर्व: सर्वत्र नंदतु । " सब लोग कठिनाइयों को पार करें, कल्याण ही कल्या...
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसादर
बहुत बढिया।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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ReplyDeleteमेरा ज्वलन उस कपूर सा
ReplyDeleteजो जले ऐसे कि......
लिए ख़ुशबू न क्लेश कोई बच पाए।।
वाह!
आभार!
Deleteसादर