जो अपने तल को छोड़
दुनिया को रौशन करते हैं ।
ज्योति तो, बाती देती है
पर बाति को
जरूरत पड़ती है
एक सहारे की
एक आवरण की
जो उसे दिए से मिलती है ।
दीया जितना आवरण छेकता है
उतने दूर तक प्रकाश को घेरता है
और रह जाता दीपक तले अंधेरा।
ठीक उसी प्रकार
मनुष्य चारों ओर
ज्ञान रूपी प्रकाश तो बाँटता फिरता है
पर अपने भीतर के अंधकार को
दूर नहीं कर पाता।
चलो ...
अपने भीतर
सुधार लाएँ
दूसरों की कमियों के पहले
अपनी कमियों पर नज़र दौड़ाएँ
तुम मेरे तल को रौशन करो
हम तुम्हारे तल को रौशन कर जाए🙏🙏🙏
सटीक उक्ति...सुंदर रचना..!
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसादर
चलो ...
ReplyDeleteअपने भीतर
सुधार लाएँ
दूसरों की कमियों के पहले
अपनी कमियों पर नज़र दौड़ाएँ
तुम मेरे तल को रौशन करो
हम तुम्हारे तल को रौशन कर जाए🙏🙏🙏
आभार।
ReplyDeleteसादर।