पर खुद में उतारना बड़ा कठिन है।
हमारे आस पास डिग्री रहित ऐसे कई डॉक्टर, इंजीनियर, कथावाचक, समाज सेवक मिल जाएंगे।
यथार्थ महाभारत को तो सब ने माना है
पर घर पर उसे रखना बड़ा कठिन है।
कौन चाहता है कि भगत सिंह उसके घर पर पैदा हो पड़ोसी के घर पर होना ही उचित है।
रामायण को घर पर रखने की चाहत तो सबकी है
पर उसे जीवन में उतारना बड़ा कठिन है ।
दोहरा जीवन जीने वाले इन लोगों का
सामान्य जीवन जीना भी बहुत कठिन है।
हर पुरुष की इच्छा सीता को पाने की होती
पर स्वयं राम बन जाना बड़ा कठिन है।
अवघड़-दानी शिव की कल्पना हर स्त्री की होती
पर स्वयं माँ गौरी बन जाना बड़ा कठिन है।
तो चलो इन कठिनाइयों से दूर हो जाए
जैसे हैं वैसे की ही स्वीकृति पाएँ ।
दूसरों के साथ स्वयं में भी
स्वीकार करने की परंपरा लाए
अपने कठिन अनसुलझे व्यक्तित्व को
सरल सुलझा हुआ बनाएँ।
शुभकामनाएँ
प्रातर्वन्दन🙏🙏🙏
।।सधु।।
रामायण को घर पर रखने की चाहत तो सबकी है
ReplyDeleteपर उसे जीवन में उतारना बड़ा कठिन है ।
दोहरा जीवन जीने वाले इन लोगों का
सामान्य जीवन जीना भी बहुत कठिन है।...सत्यता को वर्णित करतीं पंक्तियाँ..।
हार्दिक आभार जिज्ञासा जी
Deleteसादर
मेरी लिखी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" साझा
ReplyDeleteकरने हेतु आभार।
सादर।
सुन्दर
ReplyDeleteआभार
Deleteसादर
हर पुरुष की इच्छा सीता को पाने की होती
ReplyDeleteपर स्वयं राम बन जाना बड़ा कठिन है। वास्तविकता के परतों को सुंदरता व सहजता से खोलती भावपूर्ण रचना मुग्ध करती है - - नमन सह।
हार्दिक आभार माननीय
Deleteसादर
कथनी और करनी कभी एक समान नहीं होती. इसलिए जैसे हैं वैसे ही खुद को भी स्वीकारें और दूसरों को भी. बहुत सही लिखा आपने.
ReplyDeleteहार्दिक आभार महोदया
Deleteसादर
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसादर
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 20-11-2020) को "चलना हमारा काम है" (चर्चा अंक- 3891 ) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
…
"मीना भारद्वाज"
मेरी प्रविष्टि को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार
Deleteमहोदया
प्रेरक एवं भावपूर्ण सुंदर रचना.....
ReplyDeleteहार्दिक आभार महोदया
Deleteसादर
सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार महोदय
Deleteसादर