Sunday, 13 June 2021

ख़ुद में ख़ुद को तलाशने की प्यास है

मैं, मेरी कलम, और जद्दोजहद !!!
ख़ुद में ख़ुद को तलाशने की प्यास है

निरंतर  अनुनादरत 
अंतस प्रतीक्षारत 
अनुनय-विनय के 
शब्दजाल में
कहीं भटक गए हैं। 
मंजिल को पाते-पाते 
हम ख़ुद ही खो गए ।।

गुम हुए इस कदर कि 
खोज में लगे हैं 
अब तक।
पुरातत्ववेत्ताओं ने 
क्या-क्या खोज निकाला ...
भूभाग के अतीत पर
वर्तमान लिख डाला।

कोई तो खोजे मुझे...
मुझे ...
ख़ुद की तलाश है ।

एक परत चढ़ी है 
धूल की
विस्तार पर...
विरासत को विस्तार तक 
पहुँचाना ही खास है ।

धुंधली ज़मी 
लदी अस्तित्व(धूल) से 
धूल में नहा कर ।
धूल, धूलि, गोधुलि में 
धवल  करने आस है ।
मुझे ख़ुद में ख़ुद को 
तलाशने की प्यास है।

।।सधु चन्द्र।। 


9 comments:

  1. अनुपम अभीप्सा जगी है मन में

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  2. बहुत ही सुंदर रचना ।

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  3. जिसने खुद को समझ लिया, पा लिया, वह तो देवत्व को प्राप्त हो गया

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  4. एक परत चढ़ी है
    धूल की
    विस्तार पर...
    विरासत को विस्तार तक
    पहुँचाना ही खास है ।---बहुत गहन रचना है।

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  5. वाह! सार्थक प्रयास है, इसे तृप्त कर लें तो जीवन भी तृप्त हो जाता है।
    वैसे कई दफा ये जद्दोजहद चलती है पर कितना खोज पाते हैं पता नहीं , बुद्ध बनने की प्रतिबद्धता तक का सफर है ये।
    बहुत सुंदर गहन भाव रचना।

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  6. हार्दिक आभार कामिनी जी ।
    सादर।

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  7. मुझे ख़ुद में ख़ुद को
    तलाशने की प्यास है।---और यही प्‍यास आपको उत्‍कृष्‍टता प्रदान करती है सधु जी

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  8. आपकी यह रचना मेरे मन मे उतर गयी।

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  9. अनुनय-विनय के
    शब्दजाल में
    कहीं भटक गए हैं।
    मंजिल को पाते-पाते
    हम ख़ुद ही खो गए ।। बहुत सुन्दर |

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