हे ! वाग्देवी की मानसपुत्री
वरदत्त थी वरदत्त रहोगी।
अमर काल की
अमर यात्रा में,
अनन्त काल तक
अमर रहोगी।
मानव नव रसों की खान है। उसकी सोच से उत्पन्न उसकी प्रतिक्रिया ही यह निर्धारित करती है कि उसका व्यक्तित्व कैसा है ! निश्चय ही मेरी रचनाओं में आपको नवीन एवं पुरातन का समावेश मिलेगा साथ ही क्रान्तिकारी विचारधारा के छींटे भी । धन्यवाद ! ।।सधु चन्द्र।।
सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु । सर्व: कामानवाप्नोतु सर्व: सर्वत्र नंदतु । " सब लोग कठिनाइयों को पार करें, कल्याण ही कल्या...
वो खुद संगीत थी और संगीत कभी नहीं मरता।
ReplyDeleteनमन।
समय साक्षी रहना तुम by रेणु बाला
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ReplyDeleteअश्रुपूरित नमन स्वर साम्राज्ञी को 🙏😞🙏😞🙏😞🙏🙏
ReplyDeleteवाह! सटीक सत्य।
ReplyDeleteसादर नमन।
ReplyDeleteसादर
ReplyDeleteसादर नमन ।
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