Thursday 30 March 2023

राम एक नाम नहीं

राम एक नाम नहीं 
जीवन का सोपान हैं। 
दीपावली के टिमटिमाते तारे 
वाल्मिकी-तुलसी के वरदान हैं।

राम है शीतल
धारा गंगा की 
पवित्र पर... सागर का उफा़न हैं।
अहिल्या के उद्धारक 
अत्याचारियों के लिए बाण हैं।
सुग्रीव के सहायक 
शबरी के जूठे बेर की शान हैं ।

राम केवल भक्ति-भाव नहीं 
हनुमान के प्राण हैं ।
केवट संग प्रसंग बने...
प्रजावत्सल्य,पत्नीव्रत 
भारतवर्ष का अभिमान हैं।
राम एक नाम नहीं 
जीवन का सोपान हैं। 

चार धाम से चारों भाई 
सृष्टि पर प्रमाण है
राष्ट्र निर्माता  हैं श्री रामचन्द्र 
जो मानवता की खान हैं ।
आदर्श का प्रतिमान हैं ।

इसीलिए तो...
राम राज्य-सी कोई युक्ति नहीं 
राम बिना मुक्ति नहीं।🙏🏻🙏🏻🙏🏻
।।सधु चन्द्र।।


चित्र -साभार  गूगल

Sunday 26 March 2023

छठ-आस्था का महापर्व

आस्था का महापर्व छठ
_____________________
मिट्टी को मिट्टी से,परम्पराओं से, संबंधों से जोड़ने वाला, छठ पर्व चैत्र  कृष्णपक्ष तथा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक महान ,आस्थावान हिन्दू पर्व है।(समान्यतः मानता/संकल्प पूरी होने पर लोग चैती छठ का का अनुष्ठान करते हैं।) सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार,झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे गये हैं।धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है।

नामकरण
__________
छठ पर्व में 'छठ'  षष्ठ का अपभ्रंश है। छठ पर्व चैत्र  कृष्णपक्ष तथा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है अतः षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा। 

छठमहापर्व का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
_________________________
छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है।
छठ महाव्रत को लेकर रामायण महाभारत एवं पुराणों में भी कई कथाएं प्रचलित हैं-

पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी 
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कहा जाता है कि राजा प्रियवंद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने संतान की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र मरा हुआ पैदा होने से दुखी प्रियंवद मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में अपनी जान देने लगे। उसी समय भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वह सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वह षष्ठी कहलाती हैं। षष्ठी ने राजा प्रियंवद से पूजा करने की बात की। व्रत के बाद राजा का पुत्र जीवित हो गया। षष्ठी के प्रेरणा से राजा का पुत्र जीवित हुआ था तभी से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पूजा होती है। जिसे अब छठ पूजा के नाम से जाना जाता है।

रामायण कालीन छठ कथा
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एक कथा राम-सीता से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेशपर राज सूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया जिसे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थीं।

महाभारत कालीन छठ कथा
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एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व महाभारत काल में हुई थी, जिसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वह रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अ‌र्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अ‌र्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है कि जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था ।

भाई-बहन का संबंध हैं सूर्य व षष्ठी का
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लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई सबसे बड़े पर्व दीपावली को पर्वों की माला माना जाता है। पांच दिन तक चलने वाला यह पर्व सिर्फ भैयादूज तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्व छठ पर्व तक चलता है। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला यह पर्व बेहद अहम पर्व है, जो पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है। छठ पर्व केवल एक पर्व नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय खास से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अ‌र्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक अलग ऐतिहासिक महत्व है ।

                       सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी 'उषा' और 'प्रत्यूसा' हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है ।इन चारों दिनों गीतों के साथ हीं पूजा अर्चना की जाती है जिसमें प्रमुख हैं

*केलवा जे फरेला घवद से
*ओह पर सुगा मेड़रायकाँच ही बाँस के बहंगिया
*बहंगी लचकत जाए
*सेविले चरन तोहार हे छठी मइया
*महिमा तोहर अपार
*उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर
*निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे
*चार कोना के पोखरवा
*हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।

आस्था के अनमोल चार दिन
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चतुर्थी – पहला दिन (नहाय खाय ) व्रती नदी में पवित्र स्नान करते हैं और वहां से कुछ पानी एक पात्र में अपने घर, अन्य सामग्री बनाने के लिए लेकर आते हैं। वे अपने घर के आस-पास को साफ़-सुथरा रखते हैं और दिन में एक बार कद्दू-भात भोजन खा कर महापर्व छठ की शुरुआत करते हैं। खाना किसी भी पीतल और मिट्टी के बर्तनों में तथा मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी की मदद से बना होता है।

पंचमी – दूसरा दिन (लोहंडा और खरना)इस दिन भक्त पूरा दिन उपवास करते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद ही अपना उपवास तोड़ते हैं। वे पूजा में रसिआव-खीर, पूरी/रोटी और फल चढा़ते हैं। प्रसाद ग्रहण करने के बाद वे अगले 36 घंटे के लिए बिना पानी पिए उपवास करते हैं।

षष्ठी – तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य )इस दिन यानी की छठ का दिन होता है। इस दिन शाम को नदी के घाट पर सभी भक्त संध्या अर्घ्य भगवान को चढा़ते हैं। इसके बाद वे छठवर्तियाँ हल्दी के रंग का साड़ी पहनती हैं और परिवार के साब लोग मिल कर कोसी की रस्म मनाते हैं जिसमें वे पञ्च गन्ने की छड़ी को अपने दीयों के चारों ओर रखते हैं। पांच गन्ने के छड़ी पंचतत्व (पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष) का रूप माना जाता हैं।

सप्तमी  – चौथा दिन (उषा अर्घ्य, परना दिन )इस दिन सभी भक्त अपने परिवार ,संबंधी व मित्रों के संग गंगा / नदी के किनारे उगते सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं। उसके बाद वे अपना व्रत तोड़ते हैं और छठ प्रसाद ग्रहण करते है।

सम्बन्धों को  सशक्त करने वाले इस महापर्व में मन की कई गांठें खुल जाती हैं क्योंकि मनोकामनापूरक इस व्रत में परिवार के सभी सदस्यों की अहम भूमिका होती है।


चित्र- साभार गूगल

Wednesday 8 March 2023

रंगों का मौसम फाग का बयार

रंगों का मौसम
फाग का बयार
स्याह आसमान के नीचे 
बिछा फूलों का अंबार...

हर डाल हर टहनी से 
अरुणिमा छिटकती 
लगता है ...
रंग गया है
हर दिशा 
हर भाग ।

कई पतझडो़ में 
अपना सर्वस्व लुटा चुका...
शूल विहीन धरा पर
फूलों की चादर बिछा चुका
मानो कर रहा हो
प्रकृति पर मौन उपकार 
और चुपचाप ...
प्रकृति ले रही हो 
सेमल से 
पुष्पगुच्छ उपहार 🌹💐।।

।।सधु चन्द्र।।

Saturday 4 February 2023

प्रासादों के कनकाभ शिखर,होते कबूतरों के ही घर

प्रासादों के कनकाभ शिखर,
होते कबूतरों के ही घर,
महलों में गरुड़ ना होता है,
कंचन पर कभी न सोता है.
रहता वह कहीं पहाड़ों में,
शैलों की फटी दरारों में।

होकर सुख-समृद्धि के अधीन,
मानव होता निज तप क्षीण,
सत्ता किरीट मणिमय आसन,
करते मनुष्य का तेज हरण.
नर वैभव हेतु लालचाता है,
पर वही मनुज को खाता है।

चाँदनी पुष्प-छाया मे पल,
नर भले बने सुमधुर कोमल,
पर अमृत क्लेश का पिए बिना,
आताप अंधड़ में जिए बिना,
वह पुरुष नही कहला सकता,
विघ्नों को नही हिला सकता।

उड़ते जो झंझावतों में,
पीते जो वारि प्रपातो में,
सारा आकाश अयन जिनका,
विषधर भुजंग भोजन जिनका,
वे ही फानिबंध छुड़ाते हैं,
धरती का हृदय जुड़ाते हैं।
रामधारी सिंह दिनकर - रश्मिरथी

Tuesday 31 January 2023

मूर्खों की जिंदगी सांत्वना से कटती है पर कर्मठ तो संघर्ष करते हैं।

संगति भी कोई चीज है 
शेर की संगति हुई 
तो वह संघर्ष करना सिखाएगा 
पर यदि गधे की संगति हुई 
तो वह हालात के सामने झुकना सिखाएगा
क्योंकि...
मूर्खों की जिंदगी सांत्वना से कटती है
कर्मठ तो संघर्ष करते हैं।

।।सधु चन्द्र।।

Thursday 24 November 2022

अम्लसार

हम जिन खट्टे अनुभवों को 
पी जाना चाहते हैं 
कभी-कभी वही अम्लसार हमें 
खा जाती हैं। 

।।सधु चन्द्र।।

यथार्थ


यथार्थ क्या है!!!?

जो अपने हक के लिए 

खड़े ना हो 

वे पाखंडी हैं ।

जिसके मानस पटल पर 

प्रश्न ही ना उभरे

वे पारदर्शी मूर्ख।

और जिनके अंतस में 

प्रश्न नाम की कोई चीज ही नहीं 

वे साक्षात परतंत्र दास हैं।


।।सधु चन्द्र।।


Sunday 30 October 2022

#आस्था का महापर्व छठ #छठमहापर्व का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

आस्था का महापर्व छठ
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मिट्टी को मिट्टी से,परम्पराओं से, संबंधों से जोड़ने वाला, छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक महान ,आस्थावान हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार,
झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते देखे गये हैं।धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो गया है।

नामकरण
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छठ पर्व 'छठ' , षष्ठ का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की  दिवाली मनाने के बाद मनाये जाने वाले इस चार दिवसीय व्रत की सबसे कठिन और महत्त्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को यह व्रत मनाये जाने के कारण इसका नामकरण छठ व्रत पड़ा। 

छठमहापर्व का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
_________________________
छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है।
छठ महाव्रत को लेकर रामायण महाभारत एवं पुराणों में भी कई कथाएं प्रचलित हैं-

पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी 
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कहा जाता है कि राजा प्रियवंद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने संतान की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र मरा हुआ पैदा होने से दुखी प्रियंवद मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में अपनी जान देने लगे। उसी समय भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वह सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वह षष्ठी कहलाती हैं। षष्ठी ने राजा प्रियंवद से पूजा करने की बात की। व्रत के बाद राजा का पुत्र जीवित हो गया। षष्ठी के प्रेरणा से राजा का पुत्र जीवित हुआ था तभी से कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पूजा होती है। जसे अब छठ पूजा के नाम से जाना जाता है।
रामायण कालीन छठ कथा
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एक कथा राम-सीता से भी जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राज सूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया। पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने सीता पर गंगा जल छिड़क कर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया जिसे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थीं।

महाभारत कालीन छठ कथा
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एक मान्यता के अनुसार छठ पर्व महाभारत काल में हुई थी, जिसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वह रोज घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अ‌र्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अ‌र्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है कि जब पांडव अपना सारा राजपाठ जुए में हार गए तब दौपदी ने छठ व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था ।

भाई-बहन का संबंध हैं सूर्य व षष्ठी का
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लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई सबसे बड़े पर्व दीपावली को पर्वों की माला माना जाता है। पांच दिन तक चलने वाला यह पर्व सिर्फ भैयादूज तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्व छठ पर्व तक चलता है। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला यह पर्व बेहद अहम पर्व है, जो पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है। छठ पर्व केवल एक पर्व नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय खास से लेकर उगते हुए

भगवान सूर्य को अ‌र्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक अलग ऐतिहासिक महत्व है ।

                          सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी 'उषा' और 'प्रत्यूसा' हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है
इन चारों दिनों गीतों के साथ हीं पूजा अर्चना की जाती है जिसमें प्रमुख हैं
लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों सुमधुर और भक्ति-भाव से पूर्ण लोकगीत गाये जाते हैं।

*केलवा जे फरेला घवद से
*ओह पर सुगा मेड़रायकाँच ही बाँस के बहंगिया
*बहंगी लचकत जाए
*सेविले चरन तोहार हे छठी मइया
*महिमा तोहर अपार
*उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर
*निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे
*चार कोना के पोखरवा
*हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।

आस्था के अनमोल चार दिन
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चतुर्थी – पहला दिन (नहाय खाय ) व्रती नदी में पवित्र स्नान करते हैं और वहां से कुछ पानी एक पात्र में अपने घर, अन्य सामग्री बनाने के लिए लेकर आते हैं। वे आपने घर के आस-पास को साफ़-सुथरा रखते हैं और दिन में एक बार कद्दू-भात भोजन खा कर महापर्व छठ की शुरुवात करते हैं। खाना किसी भी पीतल और मिट्टी के बर्तनों में तथा मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी की मदद से बना होता है।
पंचमी – दूसरा दिन (लोहंडा और खरना)इस दिन भक्त पूरा दिन उपवास करते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद ही अपना उपवास तोड़ते हैं। वे पूजा में रसिआव-खीर, पूरी/रोटी और फल चढा़ते हैं। प्रसाद ग्रहण करने के बाद वे अगले 36 घंटे के लिए बिना पानी पिए उपवास करते हैं।

षष्ठी – तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य )इस दिन यानी की छठ का दिन होता है। इस दिन शाम को नदी के घाट पर सभी भक्त संध्या अर्घ्य भगवान को चढा़ते हैं। इसके बाद वे छठवर्तियाँ हल्दी के रंग का साड़ी पहनती हैं और परिवार के साब लोग मिल कर कोसी की रस्म मनाते हैं जिसमें वे पञ्च गन्ने की छड़ी को अपने दीयों के चारों ओर रखते हैं। पांच गन्ने के छड़ी पंचतत्व (पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष) का रूप माना जाता हैं।

सप्तमी  – चौथा दिन (उषा अर्घ्य, परना दिन )इस दिन सभी भक्त अपने परिवार ,संबंधी व मित्रों के संग गंगा / नदी के किनारे बिहनिया अर्घ्य प्रदान करते हैं। उसके बाद वे अपना व्रत तोड़ते हैं और छठ प्रसाद ग्रहण करते है।

सम्बन्धों को  सशक्त करने वाले इस महापर्व में मन की कई गांठें खुल जाती हैं क्योंकि मनोकामनापूरक इस व्रत में परिवार के सभी सदस्यों की अहम भूमिका होती है।


चित्र- साभार गूगल

Monday 24 October 2022

"प्रकाश व प्रसन्नता" के पर्व दीपावली पर आप सभी को सपरिवार अशेष शुभकामनाएँ। सधु चन्द्र

ll शुभ दीपावली, सुरक्षित दीपावली ll
"प्रकाश व प्रसन्नता" के पर्व दीपावली पर सपरिवार अशेष शुभकामनाएँ।
हमारे आराध्य श्री लक्ष्मी,देव गणेश व प्रभु श्रीराम हृदय में विराजमान हों।
प्रभु श्रीराम की कृपा से आठों सिद्धियाँ , नौवों निधियाँ और चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति हो । गणपति की कृपा से सुख , समृद्धि , आरोग्य , यश , कीर्ति और खुशी की  बौछार हो । धन, वैभव, यश, ऐश्वर्य के साथ दीपावली पर माँ महालक्ष्मी आपकी सुख सम्पन्नता व हर्षोल्लास में वृद्धि करें।
हरिॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ🙏🏻🙏🏻🙏🏻

दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सधु चन्द्र
ll शुभ दीपावली, सुरक्षित दीपावली ll

Thursday 25 August 2022

बकरी पाती खात है ताकी काढ़ी खाल।जे नर बकरी खात हैं, ताको कौन हवाल।।#कबीर

बकरी पाती खात है ताकी काढ़ी खाल।
जे नर बकरी खात हैं, ताको कौन हवाल।।

अर्थ :
कबीर दास जी कहते हैं कि बकरी एक निर्दोष जीव है जो किसी को नुक़सान नहीं पहुंचती है तब भी उसकी खाल निकाली जाती है।
      अब ये सोचने की बात है कि जो लोग बकरी का भक्षण करते हैं अर्थात् उसका मांस खाते है उनका कितना बुरा हाल होगा यह तो ईश्वर ही बेहतर जानता है।

Moral of the story

जब बेगुनाह की खाल उतार ली जाती है तो गुनाहगार का क्या हश्र होगा!!!!

चित्र-साभार गूगल

Sunday 21 August 2022

शुभचिंतक की वाणी कठोर तथा स्वार्थ पूरक की मृदु होती है

शुभचिंतक की वाणी कठोर
तथा स्वार्थ पूरक की मृदु होती है
इसके कई प्रमाण है...

।।सधु चन्द्र।।

Friday 19 August 2022

ठहराव गंदगी उत्पन्न करता है

स्थानांतरण आवश्यक है
क्योंकि...
ठहराव गंदगी उत्पन्न करता है
वातावरण प्रदूषित करता है
चाहे वह जल का हो
व्यक्ति का हो
वस्तु का हो
या ज्ञान का।

Friday 4 March 2022

जहाँ मीठे फल होते हैं पत्थर वहीं चला करते हैं

जहाँ मीठे फल होते हैं 
 पत्थर वहीं चला करते हैं।
 चलना भी चाहिए 
 क्योंकि...
फलों पर फेंके गए पत्थर
तृप्ति प्रदान करते हैं 
किंतु गंदगी में फेंके गए पत्थर 
छींटें...

।।सधु चन्द्र।।।

Sunday 27 February 2022

इंसान की असलियत की पहचान,उसके आचार व व्यवहार से होती है।

इंसान की असलियत की पहचान,
उसके आचार व व्यवहार से होती है।

एक रोचक क़िस्सा है...

एक बार की बात है राजा के दरबार में एक व्यक्ति रोजगार मांगने गया । जब उससे उसकी क़ाबलियत पूछी गई, तो उसने कहा
"मैं मनुष्य हो या पशु उसकी शक्ल देख कर उसके बारे में बता सकता हूँ,,😇

राजा ने उसे अपने खास "घोड़ों के अस्तबल का इंचार्ज" बना दिया,,,,,😎
कुछ ही दिन बाद राजा ने उससे अपने सब से महंगे और मनपसन्द घोड़े के बारे में पूछा,
तो उसने कहा....
नस्ली नहीं है....😏
राजा को हैरानी हुई, 😳
उसने जंगल से घोड़े वाले को बुला कर पूछा,,,,,
उसने बताया घोड़ा नस्ली तो हैं,
पर इसके पैदा होते ही इसकी मां मर गई थी, 
इसलिए ये एक गाय का दूध पी कर उसके साथ पला बढ़ा है,,,,,
राजा ने अपने नौकर को बुलाया और पूछा तुम को कैसे पता चला के घोड़ा नस्ली नहीं हैं??🧐
"उसने कहा 
"जब ये घास खाता है तो गायों की तरह सर नीचे करके, 
जबकि नस्ली घोड़ा घास मुह में लेकर सर उठा लेता है,,😎
राजा उसकी काबलियत से बहुत खुश हुआ,😊
उसने नौकर के घर अनाज ,घी, मुर्गे, और ढेर सारी बकरियां बतौर इनाम भिजवा दिए ,🥰
और अब उसे रानी के महल में तैनात कर दिया,,,😎
कुछ दिनो बाद राजा ने उससे रानी के बारे में राय मांगी,🧐
उसने कहा, 
"तौर तरीके तो रानी जैसे हैं,
लेकिन पैदाइशी नहीं हैं,😏
राजा के पैरों तले जमीन निकल गई, 😨
उसने अपनी सास को बुलाया,🤨 
सास ने कहा 
"हक़ीक़त ये है कि आपके पिताजी ने मेरे पति से हमारी बेटी की पैदाइश पर ही रिश्ता मांग लिया था,
लेकिन हमारी बेटी 6 महीने में ही मर गई थी,
लिहाज़ा हम ने आपके रजवाड़े से करीबी रखने के लिए किसी और की बच्ची को अपनी बेटी बना लिया,,🥰
राजा ने फिर अपने नौकर से पूछा, 
"तुम को कैसे पता चला??🧐
""उसने कहा, 
" रानी साहिबा का नौकरो के साथ सुलूक गंवारों से भी बुरा है,
एक खानदानी इंसान का दूसरों से व्यवहार करने का एक तरीका होता है,

जो रानी साहिबा में बिल्कुल नहीं।
राजा फिर उसकी पारखी नज़रों से खुश हुआ
और फिर से बहुत सारा अनाज भेड़ बकरियां बतौर इनाम दी।

साथ ही उसे अपने दरबार मे तैनात कर लिया,,😎
कुछ वक्त गुज़रा, 
राजा ने फिर नौकर को बुलाया,
और अपने बारे में पूछा,😇
नौकर ने कहा 
"जान की सलामती हो तो कहूँ”🙏🏻
राजा ने वादा किया तो उसने कहा,
 "न तो आप राजा के बेटे हो,
और न ही आपका चलन राजाओं वाला है"😐
राजा को बहुत गुस्सा आया, 😡
मगर जान की सलामती का वचन दे चुका था,😏
राजा सीधा अपनी माँ के महल पहुंचा...
माँ ने कहा,
ये सच है,
तुम एक चरवाहे के बेटे हो,
हमारी औलाद नहीं थी,
तो तुम्हे गोद लेकर हम ने पाला,,,,,😊
राजा ने नौकर को बुलाया और पूछा , 
बता, " तुझे कैसे पता चला????🧐🤨
उसने कहा 

" जब राजा किसी को "इनाम दिया करते हैं, 
तो हीरे मोती और जवाहरात की शक्ल में देते हैं,
लेकिन आप भेड़, बकरियां, खाने पीने की चीजें दिया करते हैं ...😏

ये रवैया किसी राजा का नही, 
किसी चरवाहे के बेटे का ही हो सकता है,,🤨
किसी इंसान के पास कितनी धन दौलत, सुख समृद्धि, रुतबा, इल्म, बाहुबल हैं ये सब बाहरी दिखावा हैं । 😏

इंसान की असलियत की पहचान,
उसके आचार व व्यवहार से होती है।

(प्रभावित रचना)



Wednesday 23 February 2022

#परवरिश (Parenting) और पालन

परवरिश (Parenting)
हमारा आचार,व्यवहार,आदतें और रहने का तरीका आदि सभी चीजें परवरिश के जरिए ही हमें मिल पाती है। हम बच्चों को जैसा वातावरण देंगे उसी राह में उनका विकास होगा अतः हम कह सकते हैं कि ऐसा व्यवहार जिसे माता-पिता अपने बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए अपनाते हैं उसे परवरिश कहते हैं ।
 किंतु भरण-पोषण इससे इतर है। 
अपने घर के पालतू पशु-पक्षियों  को भी हम पालते हैं किंतु वह परवरिश नहीं। परवरिश अच्छे संस्कार का प्रतिफल है। 

"हमारा व्यक्तित्व 
हमारा लहजा
हमारे अल्फाज़
  यह निर्धारित करते है कि हमारा पालन हुआ है या परवरिश"।

।। सधु चन्द्र।।

वक्त का खेल

इसे वक्त का खेल ही कहेंगे ...
एड़िया उचकाने वाले 
बड़े बनने लगते हैं।
जी-जी करने वाले 
तू-तू करने लगते हैं।।

।।सधु चन्द्र।।

कौन कहता है!!!

कौन कहता है!!!
पथरीली मिट्टी का क्षरण नहीं होता
लोलुपों का भरण नहीं होता
प्राणवायु के रहते मरण नहीं होता
बंद कमरे में आत्मा का हरण नहीं होता।
।।सधु।।

Sunday 13 February 2022

एक अटूट बंधन Happy Valentine's Day

एक अटूट बंधन जो जुड़ा तुझसे
बांधे धरा है मेरे बक्से में
तेरी चादर मेरी चुनर तले
पान-कसैली-सिक्के सहित
अभी भी सुरक्षित है वैसे हीं
जो याद दिलाती है
मिलन के मधुर पलों को।।

कभी स्वतंत्र न कर पायी तुझे
अपने चुनर की उस गाँठ से
अभी भी स्मृतियाँ 
ताजी हैं
जीवित हैं 
मेरे श्वास में....।
क्योंकि... कई भाषाओं 
परिभाषाओं से इतर है
हमारी सूक्ति...
तुम मेरे जीवन हो 
मैं तुम्हारी शक्ति
तुम आधिपत्य 
मैं तुम्हारी भक्ति।।

हार जीत के खेल से 
कहीं ऊपर है हम
जीतो तुम जग ~~~
मैंने तुम्हे ही जीत लिया
हार जीत से ऊपर 
मैंने तुम्हारा प्रीत लिया।।

हैप्पी वैलेनटाइन्स डे डियर

         ||सधु चन्द्र।|

Thursday 10 February 2022

हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी

हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी

हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी

सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमी

हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी

रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ
हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी

ज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र
आखिरी साँस तक बेक़रार आदमी

-निदा फ़ाज़ली

Sunday 6 February 2022

नमन

हे ! वाग्देवी की मानसपुत्री
वरदत्त थी वरदत्त रहोगी।
अमर काल की 
अमर यात्रा में,
अनन्त काल तक 
अमर रहोगी।
 श्रद्धाञ्जलि।

Saturday 29 January 2022

किस शिक्षा नीति/सम्प्रदाय/समाज... में यह मान्य है कि एक शिक्षक दूसरे शिक्षक को मैम/सर नहीं कहेंगे।अमर्यादित तरीके से अपने से अधिक उम्र या औधे वाले शिक्षक को नाम से बुलाएँगे।

हे ईश्वर!
किस शिक्षा नीति/सम्प्रदाय/समाज... में यह मान्य है कि एक शिक्षक दूसरे शिक्षक को मैम/सर नहीं कहेंगे।अमर्यादित तरीके से अपने से अधिक उम्र या औधे वाले शिक्षक को नाम से बुलाएँगे।

विद्यालय का एक कल्चर है कि एक शिक्षक दूसरे शिक्षक को  मैम या सर कह कर संबोधित करते हैं। अमर्यादित तरीके से अपने से अधिक उम्र या औधे वाले शिक्षक को नाम से नहीं बुलाते। ऐसे तो हमारे संस्कारों में ही सम्मान करना सिखाया जाता है किंतु  इसके अलावा शिक्षक को रेगुलर B.Ed की कक्षा के दौरान एक ग्रूमिंग क्लास भी कराया जाता है जिसमें शिक्षक को व्यवहार ज्ञान से अवगत कराया जाता है और यह बताया जाता है कि उन्हें अपने सहकर्मियों एवं सहायक कर्मियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए क्योंकि शिक्षक ही बच्चों के मार्गदर्शक होते हैं वे जैसा व्यवहार करते हैं बच्चे वैसा ही सीखते हैं। अतः मर्यादा का पालन करते हुए दीदी-भैया सहायक कर्मियों (ड्राइवर,मेड आदि) को बोला जाना चाहिए।
आप चाहे जिसे दीदी भैया बोले किंतु विद्यालय परिसर में अमर्यादित ढंग से संबोधन ना करें।



किस शिक्षा नीति/सम्प्रदाय/समाज... में यह मान्य है कि एक शिक्षक दूसरे शिक्षक को मैम/सर नहीं कहेंगे।अमर्यादित तरीके से अपने से अधिक उम्र या औधे वाले शिक्षक को नाम से बुलाएँगे।
(भले अजीब हो पर मार्गदर्शन करें)

।।सधु चन्द्र।।

जब नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है।कृष्ण की चेतावनी / रामधारी सिंह "दिनकर"


जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।


कृष्ण की चेतावनी / रामधारी सिंह "दिनकर"


मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान् हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।

‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रक्खो अपनी धरती तमाम।
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे!

दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।

Wednesday 26 January 2022

Constitution of India was written by hand.

Happy Republic day to everyone 

Constitution of India was written by hand. 

How many Indians know that the Constitution of India was written by hand. 
No instrument was used to write the whole constitution. 
Prem Bihari Narayan Rayzada, a resident of Delhi, wrote this huge book, the entire constitution, in italic style with his own hands.

Prem Bihari was a famous calligraphy writer of that time. He was born on 16 December 1901 in the family of a renowned handwriting researcher in Delhi. He lost his parents at a young age. He became a man to his grandfather Ram Prasad Saxena and uncle Chatur Bihari Narayan Saxena. His grandfather Ram Prasad was a calligrapher. He was a scholar of Persian and English. He taught Persian to high-ranking officials of the English government.

Dadu used to teach calligraphy art to Prem Bihari from an early age for beautiful handwriting. After graduating from St. Stephen's College, Delhi, Prem Bihari started practicing calligraphy art learned from his grandfather. Gradually his name began to spread side by side for the beautiful handwriting. When the constitution was ready for printing, the then Prime Minister of India Jawaharlal Nehru summoned Prem Bihari. Nehru wanted to write the constitution in handwritten calligraphy in italic letters instead of in print. 

That is why he called Prem Bihari. After Prem Bihari approached him, Nehruji asked him to handwrite the constitution in italic style and asked him what fee he would take.

Prem Bihari told Nehruji “Not a single penny. By the grace of God I have all the things and I am quite happy with my life. ” After saying this, he made a request to Nehruji "I have one reservation - that on every page of constitution I will write my name and on the last page I will write my name along with my grandfather's name." Nehruji accepted his request. He was given a house to write this constitution. Sitting there, Premji wrote the manuscript of the entire constitution.

Before starting writing, Prem Bihari Narayan came to Santiniketan on 29 November 1949 with the then President of India, Shri Rajendra Prasad, at the behest of Nehruji. They discussed with the famous painter Nandalal Basu and decided how and with what part of the leaf Prem Bihari would write, Nandalal Basu would decorate the rest of the blank part of the leaf.

Nandalal Bose and some of his students from Santiniketan filled these gaps with impeccable imagery. Mohenjo-daro seals, Ramayana, Mahabharata, Life of Gautam Buddha, Promotion of Buddhism by Emperor Ashoka, Meeting of Vikramaditya, Emperor Akbar and Mughal Empire.. 

Prem Bihari needed 432 pen holders to write the Indian constitution and he used nib number 303. The nibs were brought from England and Czechoslovakia. He wrote the manuscript of the entire constitution for six long months in a room in the Constitution Hall of India. 251 pages of parchment paper had to be used to write the constitution. The weight of the constitution is 3 kg 650 grams. The constitution is 22 inches long and 16 inches wide.

Prem Bihari died on February 17, 1986.

Sunday 16 January 2022

#शब्द

शब्द
बयार से भी हल्का
फूलों की पखुड़ियों...
से भी कोमल
धरती सा धारक
आकाश सा विस्तृत
प्रेम सा मधुर
अमृत सा ग्राह्य
शूल से भी तीक्ष्ण
ये शब्द अधर पे
मनोभावानुरूप चलते हैं।।
       ||सधु चन्द्र।।

Thursday 6 January 2022

#विडंबना

जिस देश का पत्रकार बिका हुआ 
विपक्ष डरा हुआ 
जनता मौनधारी हो 
वहाँ लोकतंत्र महज़ मज़ाक है ।
विडंबना.....।

90% लोग मज़ाक में ही जीते हैं
।।सधु चन्द्र।। 

Saturday 1 January 2022

खृष्टाव्दीयं नववर्षमिदम् --- इति कामये ।।सधु चन्द्र:।।🌷

सर्वस्तरतु दुर्गाणि  सर्वो  भद्राणि पश्यतु ।
सर्व: कामानवाप्नोतु सर्व: सर्वत्र नंदतु ।
"  सब लोग कठिनाइयों को पार करें, कल्याण ही कल्याण देखें, सभी की मनोकामनाएं पूर्ण हो, तथा सभी हर परिस्थिति में आनंदित हो ।
खृष्टाव्दीयं नववर्षमिदम् --- इति कामये ।
सधु चन्द्र:
✨✨✨✨✨✨✨✨
May this year bring new happiness, new goals, new achievements, and a lot of new inspirations in your life. Wishing you and your family a year fully loaded with 🥳🥳happiness.
*HAPPY NEW YEAR 2023*
✨✨✨✨✨✨✨✨
Warm Regards 
Sadhu Chandra


Friday 17 December 2021

Don't mugup

मछली की योग्यता है पानी में तैरना 
घोड़े की योग्यता है रेस में दौड़ना 
बंदर की योग्यता है पेड़ पर चढ़ना ।
हर कोई अपने क्षेत्र में निपुण व पारंगत है 

मछली अगर पेड़ पर नहीं चढ़ पाती तो इसका मतलब यह कतई नहीं कि वह अयोग्य है ।
मछली को जीने के लिए 
पेड़ पर चढ़ना नहीं बल्कि 
नदी में तैरना जरूरी है।।

।।सधु चंद्र।।

सब कुछ  जैसा-तैसा करने से अच्छा है 
कुछ अच्छा करें।
Don't mugup

Monday 13 December 2021

#विस्तार

जिसमें जितनी अधिक क्षमता होगी उससे उस क्षमता को पूरा करने में उतनी ही गलतियाँ होंगी ।
अब हमें विचार करना है कि हम उस क्षमता को काट-छाँट कर एक छोटा सा बगीचा बनाएँ
या उसकी गलतियों को सुधारते हुए एक विस्तृत जंगल।।

।।सधु चन्द्र।। 

Sunday 5 December 2021

असंतुष्ट लोग


अपने जीवन में असंतुष्ट लोग 
दूसरों की बुराई करते हैं।

।।सधु चन्द्र।।

जनहित में जारी - ये स्वभाव से ईर्ष्यालु होते हैं। 

जनहित में जारी...

पानी ...
सबको एक समान मिलता है 
पर ,
करेला कड़वा, 
बेर मीठा और 
इमली खट्टी होती है 
दोष पानी का नहीं 
बल्कि बीज का है।

*जनहित में जारी - ऐसे कड़वे  बीज से दूरी रखनी चाहिए जो करेले की तरह फ़ायदेमंद न हो।।

Saturday 20 November 2021

ताकतवर और बुद्धिमान

ताकतवर वही जो ताकत से लड़ाई जीत ले 
पर... 
बुद्धिमान वही जो बुद्धि से उस लड़ाई को रोक दे।।
।।सधु चन्द्र।। 

Tuesday 19 October 2021

मन का हो तो अच्छा न हो तो और अच्छा...

उपजाऊ या बंजर 
केवल ज़मीन ही नहीं
बल्कि ...
हमारा मन भी होता है ।

जहाँ जो रोपा जाए 
या तो वह खूब बढ़ता 
या तो नष्ट ही होता है ।

पर बात तो 
उस लगन और मेहनत की होती है 
जो बंज़र जमीन का सीना चीर 
जीवट विशालकाय वृक्ष को पनपाता है ।।

मन का हो तो अच्छा 
न हो तो और अच्छा।।

।।सधु चन्द्र।। 

Wednesday 15 September 2021

घरों पे नाम थे

घरों पे नाम थे...
नामों के साथ ओहदे ।
बहुत तलाश किया पर,
कोई आदमी ना मिला ।।

#बशीर बद्र

Friday 3 September 2021

तूूफ़ान की पोटली

किसी ने तूूफ़ान की पोटली थमाई... 
पर,  
 मैं हँस कर दूर हो गई...।

सागर की लहरें तेज थी 
स्तब्ध शरीर शांत था ।
पैरों तले रेत खिसकती 
सीने में उठता तूफान था ।
एड़िया जमाई खड़ी रही 
सब कुछ ना इतना आसान था!!!
बस!
कुछ ऊपर वाले 
और कुछ उनके बंदे के ऊपर छोड़ दिया।।

।।सधु चन्द्र।। 

Tuesday 31 August 2021

वाणी का पड़ता है प्रभाव



वाणी का पड़ता है प्रभाव 

जैसा आप सामने वाले से बातचीत के दौरान शब्दों का प्रयोग करते हैं, वैसा ही प्रभाव सामने वाले पर भी पड़ता है। हमेशा शालीन भाषा का प्रयोग करते हुए सामने वाले को प्रभावित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

किन्तु
हमारे यहाँ की असंतुष्ट ,अतृप्त, दुखी आत्मा...
सुखी आत्मा को झकझोरने की कोई कसर नहीं छोड़ती।।

प्रमाणिक विक्षिप्तता से ...

स्वस्थ दिखने वाले विक्षिप्त जन 
अधिक घातक होते हैं 
क्योंकि ये
मानसिक चोट पहुंचाते हैं।।

।।सधु चन्द्र।। 

चित्र - साभार गूगल 

दिमाग एक ऐसा अंग...

दिमाग 
एक ऐसा अंग जो...
चलता है 
चलाता भी।
जगता है
सोता भी।
गर्म भी होता है 
ठंडा भी ।
अच्छा होता है
खराब भी ।
खाया भी जा सकता है 
चाटा भी ।
खुलता भी है 
बंद भी ।
और तो और 
बत्ती भी जलती है  
जमता है दही भी  😜😜😜

यह दिमाग ही है जो 
आवेश को 
नियंत्रण में रखता है ।
पर प्रयोग न करने पर 
दीमक भी लगता है।

।।सधु चन्द्र।। 

चित्र साभार- गूगल 


Wednesday 30 June 2021

बच्चे खुशमिज़ाज शिक्षक को पसंद करते हैं और पसंद करें क्यों न!!!

बच्चे खुशमिज़ाज शिक्षक को पसंद करते हैं 
और पसंद  करें क्यों न!!! 

खुशमिज़ाजी के साथ 
पढ़ाया गया पाठ 
बच्चों के ज़ेहन में ...
बस जाता है 
चाहे वह ...
कितना ही कठिन क्यों ना हो!!!

वहीं दूसरी ओर 
बेरुखी से पढ़ाया गया पाठ 
बस... सिलेबस पूरा कर सकता है
ज़ेहन में उतारा नहीं जा सकता ।

क्योंकि...
खुशमिज़ाज माहौल में बच्चे 
खाली पतीले की तरह आते हैं 
चाहे जितना भर दो ।
पर...
इसके विपरीत स्थिति में 
सब कुछ ऊपर-ऊपर 
बह जाता है 
और हमें लगता है कि 
बच्चों के पल्ले ही कुछ नहीं पड़ा!!!!

तो चलिए 
अपना मिज़ाज ही बदल लें ।
खाली पतीले में अपना गुण भर दें।।

।।सधु चन्द्र।। 

Tuesday 29 June 2021

कुछ हृदय की ज्वारभाटा ने उड़ेला कुछ आँखों की नम लहरों ने...

नजरें टिकी होती हैं
हर प्रक्रिया पर तुम्हारे। 
बहुत थामा था
प्राकृतिक प्रतिक्रिया को हमारे ।। 
पर ...
कुछ हृदय की ज्वारभाटा ने उड़ेला 
कुछ  आँखों की नम लहरों ने।।
 
।।सधु चन्द्र।।

सुनना-सुनाना सब परिस्थितियों का खेल है...


सुनना-सुनाना 
सब परिस्थितियों का खेल है ।
अनुकूल समय...
उपदेश देना 
प्रतिकूल समय ...
उपदेश सुनना 
सीखा देती है ।

एक इंसान...
हर किसी के लिए 
एक सा नहीं होता। 
कोई... अच्छे के लिए अच्छा नहीं होता 
तो कोई ...बुरे के लिए अच्छा नहीं होता।

यह इंसान वही है
 पर जहां एक ओर वह...
किसी के  लिए बुरा नहीं होता 
तो वहीं दूसरी ओर 
किसी के लिए अच्छा नहीं होता।।

।।सधु चन्द्र।।

Sunday 13 June 2021

ख़ुद में ख़ुद को तलाशने की प्यास है

मैं, मेरी कलम, और जद्दोजहद !!!
ख़ुद में ख़ुद को तलाशने की प्यास है

निरंतर  अनुनादरत 
अंतस प्रतीक्षारत 
अनुनय-विनय के 
शब्दजाल में
कहीं भटक गए हैं। 
मंजिल को पाते-पाते 
हम ख़ुद ही खो गए ।।

गुम हुए इस कदर कि 
खोज में लगे हैं 
अब तक।
पुरातत्ववेत्ताओं ने 
क्या-क्या खोज निकाला ...
भूभाग के अतीत पर
वर्तमान लिख डाला।

कोई तो खोजे मुझे...
मुझे ...
ख़ुद की तलाश है ।

एक परत चढ़ी है 
धूल की
विस्तार पर...
विरासत को विस्तार तक 
पहुँचाना ही खास है ।

धुंधली ज़मी 
लदी अस्तित्व(धूल) से 
धूल में नहा कर ।
धूल, धूलि, गोधुलि में 
धवल  करने आस है ।
मुझे ख़ुद में ख़ुद को 
तलाशने की प्यास है।

।।सधु चन्द्र।। 


Monday 17 May 2021

हमने मौत से लड़कर जीवन जीतना सीखा है।।

उड़ान हौसलों की 
ना हो कभी कम 
इस आसमां को पी जाएं
भर लें बाजुओं में 
हवाओं के दम ।।

 ऊंची लहर तुम 
उठो और ऊँचा  
गिरो तो चट्टान बन 
भर लूं मैं तुम्हें हमदम।।

कि चलो क्षितिज पार 
मंज़िल है वहाँ 
जहाँ दूर-दूर  सागर से 
आसमां मिलता है।।

अब क्या  खौफ़... किसी का
हमने मौत से लड़कर
जीवन जीतना सीखा है।।

आशा महासाध्वी कदाचित् मां न मुञ्चति।

।।सधु चन्द्र।। 

Monday 26 April 2021

एक अनुभव कोरोनावायरस के नाम

पिछले एक साल में कई कविताएँ व लेख लिख डाले। पता नहीं कितनों को जागरूक कर पाई अपने शब्दमयी जीवन से। पर, जब... वास्तविक जीवन में सामना हुआ उस भयावह आत्मा से, लील जाने वाले दैत्य से, तो मानो जागरूकता के लिए शब्द नहीं बचे थे। 
शरीर  निस्तेज था।
मन मानो शून्य में। 

मैंने महसूस किया कि मैं सबकी अपनी हूँ पर मेरे भीतर जिस भयावह प्रेत आत्मा का वास हो गया है वह मेरे आस-पास भटकने वाले मेरे अपने लोगों को, अपनी एक फूक से अपनी गिरफ्त में ले सकता है।

बस एक चीज अनुभव कर भावुक हो उठी कि मेरे बाद बच्चों के खान-पान का ख़्याल कौन रखेगा !!!!
और झर-झर अश्रुधारा फूट पड़े।
मैं सकारात्मक प्राणी हूँ और कोविड के सकारात्मकता से जूझ रही हूँ  पर शीघ्र ही सकरात्मकपूर्वक इस पर  विजय प्राप्त करुंगी।
 ।।सधु चंद्र।।

Tuesday 13 April 2021

अनेकता में एकता का अनूठा दिनांक 14 अप्रैल


अनेकता में एकता का अनूठा दिनांक 14 अप्रैल 
अनूठा दिनांक 14 अप्रैल अनेकता में एकता का पर्व है जो कि वैशाखी एवं अन्य नामों से प्रचलित है तथा हिन्दुओं, बौद्ध और सिखों के लिए महत्वपूर्ण है। 
वैशाख के पहले दिन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक क्षेत्रों में बहुत से नववर्ष के त्यौहार जैसे 
नववर्ष -कश्मीर (कश्मीरी पंडित) 
बैसाखी - पंजाब 
सतुआन- बिहार
जुड़शीतल- मिथलांचल(बिहार)
पोहेला बोशाख/नबा बर्ष- बंगाल 
बोहाग बिहू- असम
विशु-केरल
पुथंडु-  तमिलनाडु 
यूगाडी- कर्नाटक 
 उगाडी- आन्ध्र प्रदेश 
कोंकण - सम्वत्सर पर्व
आदि मनाए जाते हैं।क्योंकि इस दिन सूर्य, मीन से मेष राशि में प्रवेश करता है। इस कारण इस दिन को मेष संक्रान्ति भी कहते है। इसी पर्व को विषुवत संक्रांति भी कहा जाता है।
14 अप्रैल के इन पर्वों के पीछे कृषि प्रधान देश के रबी फसल की कटाई है।जब खेतों में रबी की फसल पककर लहलहाती हैं,तो देश के कोने-कोने में बसे किसानों के मन में फसलों को देखकर खुशी मिलती और वे अपनी खुशी का इजहार बैसाखी एवं अन्य पर्व के रूप में  मनाकर करते हैं। निश्चय ही या अनेकता में एकता का प्रतीक है।

 इस पर्व को  उत्तर भारत के लोग बेहद  हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। इसे सत्तू संक्रांति या सतुआन भी कहा जाता है।
 

बैसाखी

जुड़ शीतल 

पोहेला बोशाख/नबा बर्ष
बोहाग बिहू

पुथंडु
की शुभकामनाएँ ।


इसके अतिरिक्त संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष,बहुज्ञ   'ज्ञान का प्रतीक' (सिम्बॅल ऑफ नॉलेज) डॉ॰ भीमराव अम्बेडकर के  जन्म दिवस के रूप में भी यह 14 अप्रैल मनाया जाता है।
बाबा अम्बेडकर की जयंती पर उन्हें सादर नमन 🙇। 

।।सधु चन्द्र।। 
चित्र साभार -गूगल 

Thursday 8 April 2021

मेरा लहज़ा

 
परवरिश और लहज़े में 
अन्योन्याश्रय का संबंध है।

परवरिश मानो पानी 
जैसा पिए वैसा लहज़ा/वैसी वाणी।

यह लहज़ा ही है जो 
आपको 
किसी से दूर ले जाता है ।
यह लहज़ा ही है जो 
आपको 
किसी के करीब लाता है ।।

लोग पसंद करते हैं 
नापसंद करते हैं। 
करीब होते हैं या 
दूर से नमस्कार करते हैं ।।

लहज़ा ही है 
जो ज़ेहन में बस जाता है
चित्रकार के उकेरे चित्र सा 
पन्ने से चिपक जाता है।।

मेरा लहज़ा  ही था
जो उसकी
ज़हन में बस गया ।
बदले में जो चंद शब्द
उसने दिए
ताउम्र मेरी कलम में
वह कविता बन
बस गया।।

।।सधु चन्द्र।।

चित्र- साभार गूगल

Saturday 3 April 2021

तेरी नज़रें...

 धार तेरी तीखी नजरों की...
कि भाप जाते हैं 
नज़र मिलाने से पहले।

कभी तेरी उठती नज़रें...
कभी तेरी झुकती नज़रें...
उठाने और 
गिराने का 
इरादा साथ रखते हैं...।

।।सधु चन्द्र।।

चित्र - साभार गूगल

Wednesday 31 March 2021

स्वाभिमान होना चाहिए न कि अभिमान होना चाहिए ।

विनम्रतापूर्ण ज्ञान से ही 
होता मानव ज्ञानी ।
विनय-विवेक-नम्रता बिन 
कहलाता अभिमानी ।।
अतः ....
स्वाभिमान होना चाहिए 
न कि अभिमान होना चाहिए ।

"प्रशंसा" सिर झुका कर 
विनम्रता से स्वीकार हो। 
किंतु... आलोचना पर भी 
गंभीरता से विचार हो ।

क्योंकि!!!
आलोचना...
परिष्कृत स्थान देती है ,
तभी श्रद्धा...
ज्ञान देती है ।
नम्रता...
मान देती है एवं 
योग्यता...
आपको एक स्थान देती है।।

।।सधु चन्द्र।।

Monday 15 March 2021

क्रोध संतप्त, हृदय विरक्त

क्रोध संतप्त, हृदय विरक्त 
पर न उढे़ल, 
शब्दों से तू रक्त।
अधरों को दे विराम
नयनों का बन भक्त।। 

शिक्षालय है देह तेरा 
हो शिक्षा विषय अनिवार्य
पाखंड,आडंबर विषयों का
सदा ही कर परिहार्य।।

।।सधु चन्द्र।। 

चित्र-साभार गूगल

Wednesday 3 March 2021

अंतर्मन को छूना, प्रहार से भारी है

हथौड़ी के बार-बार प्रहार करने पर
ताला खुलता नहीं टूट जाता है। 
 निरंतर वार पर जब
 अभिमानी ताला न खुला 
तब हथौड़ी ने, 
चाबी के पास जाकर पूछा...
तुम ऐसा क्या करती हो!!!
जो कि मेरे प्रहार से संभव नहीं!!!
चाबी ने कहा...
 तुम बाह्य प्रहार करते हो पर मैं...
 अंतर्मन को छूती हूँ।

अंतर्मन को छूना, प्रहार से भारी है।
।।सधु चंद्र।।

चित्र-साभार गूगल

हे मन उठ !

स्वारथ सकल पूरित शोरगुल-कोलाहल।
धैर्य मन पीता
नितदिन हलाहल।।
हे मन उठ !
चल क्रान्ति ला।
लोहे को लोहे से काट
जग में शान्ति फैला।।

प्रातर्वन्दन 🙏🙏🙏🙏💐


।।सधु चन्द्र।। 

Sunday 28 February 2021

आर्थिक निर्भरता क्यों?

आर्थिक रूप से कमजो़र होना ही 
महिला के लिए अभिशाप है।

स्त्री विमर्श से बाहर निकलना 
इतना आसान नहीं...
यह अच्छा है वह बूरा 
काम करने की जरूरत क्या है!!! 
पति की इनकम तो इतनी अच्छी है 
तुम्हें क्या जरूरत आन पड़ी !!!
किस चीज कमी है!! 
जो घर से बाहर निकल पड़ी ।।

वह सब तो सही है ...
पर... एक महिला ही समझ सकती है 
महिला के दिल के हालात...
जब जरूरत पड़ती है तो 
फैलाना पड़ता है हाथ।

भाई साहब! 

बिना वेतन के 
24 घंटे का काम नहीं दिखता 
बस... क्या करती हो!!!
यही ध्वनि कान में बार-बार है गूंजता।।


।।सधु चन्द्र।।

Friday 26 February 2021

समस्या

दुनिया के साथ समस्या यह है कि 
बुद्धिमान लोग संदेह से भरे हैं जबकि
मूर्ख लोग आत्मविश्वास से।
: वुकोव्स्की :

अब आपकी समझ आपके हाथ  जो समझो😊

Tuesday 23 February 2021

कारपोरल पनिशमेंट वर्जित

मनुष्य और पशु में 
बड़ा अंतर है 
हिंसा-अहिंसा का।

जहाँ मनुष्य वाणी से 
भावनाओं को अभिव्यक्त करता है, 
वही पशु हिंसा द्वारा ।

सुना है आपके पास पर्याप्त डिग्रियाँ हैं
और मनुष्य के रूप में भी 
अवतार लिया है आपने 
जो कि सृष्टि का 
बुद्धिमान जीव कहलाता है ।

यदि पेड़-पौधों के पास 
पर्याप्त फल हो तो वे 
लदकर झुक जाते हैं 
समर्पित हो जाते हैं ।

कुएं में पर्याप्त पानी हो तो वह 
आपकी पहुंच तक आ जाता है ।
नदियों में पर्याप्त जल हो तो 
खेत-खलिहान लहलहाने लगते हैं।

ख़ुद को योग्य समझने वाले 
क्या लाभ आपके ज्ञान का !!!
जब अंधकार में 
प्रकाश न पहुंचे
और बच्चे आतंकित हों आपके कोप से...।

शिक्षक रोल मॉडल होते हैं उनका  एक ही उद्देश्य और एक ही लक्ष्य होना चाहिए बच्चों में ज्ञान बांटना न कि शारीरिक दंड बांटना। ज्ञान बढ़ाइए कोप नहीं।

।।केवल अपवाद रुपी शिक्षक के लिए।।

।।सधु चंद्र।।
 चित्र - साभार गूगल




Sunday 21 February 2021

जय-जय-जय चापलूस महाराज

जय-जय-जय चापलूस महाराज 
स्वाभिमान ना आता तुमको रास।
पिछल्ले बने घूमते तुम 
नहीं रुकता कभी 
तुम्हारा कोई काज ।
गुडबुक्स में ऊपर रहते तुम 
बॉस करता तुम पर नाज़ ।
चापलूसी,व्यवहार-कुशल ...
पड़े रहते चरणों के पास।।

शहद में डुबती
वाणी तुम्हारी ।
हर पक्ष में होती 
हामी तुम्हारी ।
उल्लू सीधा करने में ...
तलवे चाटना न, लगता भार।

जय-जय-जय चापलूस महाराज 
स्वाभिमान ना आता तुमको रास।।

स्वार्थ ही परमार्थ ।
स्वाभिमान का परित्याग ।
गिड़गिड़ाते, गिरे रहने पर 
न आता तनिक भी लाज।

हम तो देते तुम्हें एक ही नाम ...
बिन पेंदी का लोटा
जो किसी का ना होता 
बस...
ढलमलाता 
एक कोने से दूसरे कोने तक 
जब तक न पूर्ति हो तुम्हारा स्वार्थ।

#जनहित में जारी
"ऐसे कार्टून लोग अवसरवादी,परिवार व दायित्वों के प्रति कमजोर, धूर्त,पाखंडी व धोखेबाज होते हैं"।।

।।सधु चन्द्र।। 
चित्र - साभार गूगल

Monday 15 February 2021

सर्द ओस में सिमटे ख़्याल तेरे लिहाफ से निकल बाहर जाते नहीं...

सर्द ओस में सिमटे ख़्याल तेरे 
लिहाफ से निकल बाहर जाते नहीं ।

 लिफाफे के बाहर जो पड़ा है ख़त 
उस ख़त में ऐसा तो कुछ लिखा  नहीं ।
जैसा कि हाथ फेर महसूस.... किया मैंने ।

बहुत रहस्यमयी है 
यह टुकड़ा कागज़ का...।
पता नहीं... 
जो मैंने सोचा 
वह तुमने कहा ! 
या कहा नहीं !

सर्द ओस में सिमटे ख़्याल तेरे 
लिहाफ से निकल बाहर जाते नहीं ।

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बहुत ख़ूबसूरत,तिलस्मी है 
झरोखा तेरी यादों का ।
भले बंद हो पलके मेरी 
पर यादों का सिलसिला जाता नहीं ।
कपड़ों को तह करते-करते 
यादों की तहे खुल जाती हैं
और कब तह हो जाती हैं यादें तुम्हारी  
कपड़ों की तहों में 
पता नहीं...!

।।सधु चन्द्र।। 
चित्र - साभार गूगल 

राम एक नाम नहीं

राम एक नाम नहीं  जीवन का सोपान हैं।  दीपावली के टिमटिमाते तारे  वाल्मिकी-तुलसी के वरदान हैं। राम है शीतल धारा गंगा की  पवित्र पर...